Tuesday, May 12, 2015

चुनाव जो इतिहास रच गया (भाग-3): परिणामों ने पलट दी राजनीति की तस्वीर

2014 के चुनाव उपरांत भाजपा की सरकार बनेगी ऐसा विश्वास तो पार्टी के भीतर था, लेकिन अकेले अपने दम पर बनेगी ये दिग्गज से दिग्गज भाजपाई भी नहीं सोच पा रहे थे। यही कारण था कि पार्टी आखिरी दम तक अपने सहयोगियों की संख्या बढ़ाने में लगी थी। गठबंधन के लिए बातचीत का दौर खुला हुआ था। लेकिन भारत के चुनावी इतिहास में सबसे लंबे चले चुनाव का जब 16 मई को परिणाम आया तो उसने भारतीय राजनीति की तस्वीर बदल कर रख दी। आजादी के 67 साल बाद पहली बार देश में किसी गैर कांग्रेसी दल को अकेले अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिल गया। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दूर-दूर तक सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस पार्टी किसी भी राज्य में दो अंकों में सीटें नहीं ला पाई और अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए 44 सीटों पर सिमट गई। देश की जनता ने मिलीजुली सरकार की कमजोरियों और लाचारियों का एक झटके में इलाज कर दिया। क्षेत्रीय पार्टिंयों की ब्लैकमेलिंग पर एकाएक विराम लग गया। उठापटक के पुरोधाओं के चेहरे लटक गए और मजबूत राष्ट्र का सपना देखने वालों की आंखें छलक उठीं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की ऐतिहासिक जीत की गवाह बनकर 16 मई की तारीख देश के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज हो गई। 2014 के चुनाव परिणाम की सबसे मजेदार बात ये है कि इनके आंकड़े इतने एक-तरफा थे कि इनको याद रखना किसी के लिए भी बेहद आसान है।

खिसियानी बिल्ली
भाजपा की ये ऐतिहासिक जीत न तो विपक्ष को हजम हो रही थी और न कुछ पत्रकार रूपी चुनाव विश्लेषकों को। जब कोई तर्क देते नहींे बना तो कहा गया कि भाजपा को सीटें भले ही 282 मिल गई हों, लेकिन उसका वोट शेयर महज 31.3 प्रतिशत है, जो उसे सबसे कम वोट पाकर बहुमत लाने वाली सरकार की श्रेणी में डालता है। पर अगर आंकड़ों को गहराई से विश्लेषण किया जाए तो भाजपा की स्थिति किसी भी दृष्टि से कमजोर नहीं लगती। भाजपा ने कुल लोकसभा सीटों में से केवल 428 पर ही अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और इन सीटों का वोट शेयर 40 प्रतिशत बैठता है। भाजपा ने गुजरात में 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाए। कुल 6 प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल गए। जबकि कुल 9 प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में 40 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और तीन राज्यों में 30 प्रतिशत से ज्यादा मत मिले।

यूपी ने दिखाया दम
सभी पोल पंडितों को हैरानी में डालते हुए भाजपा ने दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा में शत प्रतिशत सीटें जीतकर अनोखा इतिहास रचा। इसके अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में भी ऐतिहासिक जीत दर्ज कराई। उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीट जीतकर भाजपा ने ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जो खुद उसके लिए भी तोड़ना अब मुश्किल होगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जबरदस्त जीत के पीछे एक ऐसा माहौल खड़ा था, जो अब शायद की कभी मिले। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत में जो फाॅर्मूला काम किया उसे ऐसे लिखा जा सकता है- 

"केंद्र सरकार के खिलाफ लहर+राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा+नरेंद्र मोदी लहर+मुजफ्फरनगर दंगों का दंश = भाजपा की ऐतिहासिक जीत"

ये भाजपा के पक्ष में एक ऐसा ब्लेंड था जो आगे कभी नहीं मिलेगा और भाजपा का भविष्य में 71 सीटें जीत पाना बेहद मुश्किल है। 

अन्य राज्य
उधर मध्य प्रदेश में 29 में से 27 सीट जीतकर भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया। जो दो सीटें कांग्रेस के खाते में गईं उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया की ग्वालियर सीट और कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट शामिल है। राजघराने से जुड़े सिंधिया की जीत तो समझ आती है, लेकिन जबरदस्त मोदी लहर के बीच कमलनाथ का अपनी सीट निकाल पाना काबिले तारीफ है। जबकि छत्तीसगढ़ में भाजपा ने 11 में से 10 सीटें जीतीं, जो एक दुर्ग सीट पार्टी हारी उसके पीछे भी कहा जा रहा है कि पार्टी के स्थानीय नेतृत्व ने इसे जानबूझकर हारा। जम्मू कश्मीर जैसे सेंसिटिव राज्य में भी पार्टी ने छह में से तीन सीट जीतकर सबको हैरत में डाल दिया। जम्मू कश्मीर से अब्दुल्ला परिवार का पूरी तरह सफाया हो गया। इधर बिहार में भाजपा ने भले ही 40 में से 22 सीटें जीती हों, पर उसका वोट शेयर महज 29.9 प्रतिशत ही रहा। आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को इस तरफ ध्यान देना होगा। जबकि कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 17 सीटें जीतकर मजबूत वापसी की और 43.4 प्रतिशत मत प्राप्त किए।

कहां हुई दुर्गति
जिन बड़े राज्यों में पार्टी की दुर्गति हुई उनमें दक्षिण और पूर्व के राज्य शामिल हैं। केरल में बिना खाता खोले पार्टी को 10.5 प्रतिशत मत मिले। तमिलनाडु में 5.5 प्रतिशत मत पाकर एक सीट जीती जबकि एक सीट सहयोगी पीएमके ने। जबकि जयललिता की अन्नाद्रमुक ने 37 सीटों पर जबरदस्त सीट दर्ज की। भ्रष्टाचार के चलते कानूनी चंगुल में फंसा करुणानिधि परिवार को सिफर पर धूल चाटनी पड़ी। उड़ीशा में 21 में से 20 सीटों में नवीन पटनायक की बीजद ने शानदार जीत दर्ज कराई, लेकिन एक सीट जीतकर भी भाजपा को राज्य में 21.9 प्रतिशत मत मिले जो पार्टी के लिए एक अच्छा संकेत हो सकता है। पश्चिम बंगाल में 42 में से 34 सीटें जीतकर ममता दीदी ने अपना दबदबा कायम रखा, जबकि भाजपा ने अपने वोट शेयर में दस प्रतिशत का इजाफा करते हुए 17 प्रतिशत मतों के साथ दो सीटें जीतीं। बंगाल में सीपीआईएम के वोट शेयर में जबरदस्त कमी आई, जो ये संकेत देता है कि वहां का वोटर विकल्प की तलाश में है। आंध्र प्रदेश में भाजपा टीडीपी के साथ गठबंधन में थी और दोनों ने मिलकर 25 में से 17 सीटें जीतीं, लेकिन दो सीटों पर सिमटी भाजपा के लिए आंध्र में स्थिति कुछ बहुत अच्छी नहीं है। जबकि हाल में अलग हुए तेलंगाना में भी पार्टी कोई विशेष उपलब्धि दर्ज नहीं करा पाई। 

भाजपा की कमजोर नस
भाजपा भले ही एक राष्ट्रीय पार्टी हो, लेकिन केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तलंगाना, पश्चिम बंगाल और उड़ीशा में उसकी स्थिति कमजोर है। पंजाब में अकाली दल के बिना पार्टी अभी तक कुछ खास नहीं कर पाई है। जबकि पर्वोत्तर राज्यों में अरुणाचल और आसाम में पार्टी अगली बार राज्य सरकार बनाने की स्थिति में लग रही है, किंतु मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम में पार्टी बेहद कमजोर है। केंद्र शासित राज्यों की बात करें तो एक लक्षद्वीप ही है जहां भाजपा के लिए निकट भविष्य में कोई संभावना नजर नहीं आती।
(To be continued....)

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