Monday, February 13, 2012

वैलेंटाइन हफ्ते के बहाने...


7 फरवरी को गुलाब दिवस था, बोले तो रोज डे। आॅफिस जाते वक्त मेट्रो में काॅलेज के लड़के-लड़कियों को आपस में एक-दूसरे को विश करते देखा। वैलेंटाइन और उससे जुड़े दिनों का सबसे बड़ा मार्केट स्कूल काॅलेजों में ही बसता है। तो उन स्टूडेंट्स की बातों से मेरे ज्ञान चक्षु खुले। फिर सोचा जब ज्ञान बढ़ ही गया है तो इसका इस्तेमाल भी कर लिया जाए, सो झट से पत्नी को एक एसएमएस टाइप कर दिया ‘हैप्पी रोज डे!’ वैसे भी शादी के बाद पहली बार रोज डे टाइप चीजें आई हैं। हालांकि अपन के माइंड में वैलेंटाइन जैसी चीजें कभी फिट नहीं हो पाई। न ही पत्नी का माइंड सेट वैसा है। भारत में तो हर सुबह जब लोग अपने माता-पिता के पांव छूते हैं तो उनका फादर्स और मदर्स डे होता है; फिर शाम को जब पत्नी से प्रेम भरी बातें करते हैं तो हर रोज वैलेंटाइन डे होता है। हमें अपने रिश्ते निभाने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं। हालांकि इन विचारों को अपनी इलीट क्लास मित्र मंडली आॅर्थोडाॅक्स टाइप कहकर नकार देती हैं। या ये भी कह दिया जाता है कि हिंदी भाषा में लिखने वाले इसी टाइप के लोग होते हैं। खैर कोई जो कहे, हमें उससे क्या? हमें अभिव्यक्ति की आजादी है। तो जी मेरे एसएमएस का कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उधर से ‘हा हा हा हा... थैंक्यू’ लिखकर आ गया। 

खैर बात यहीं खत्म हो गई। फिर आॅफिस पहुंचा तो गूगल पर भी रोज डे की चर्चा थी, जिन न्यूज वेबसाइट्स को मैं पढ़ता हूं उन पर भी रोज डे महक रहा था। कुछ चीजें आपको जबरदस्ती परोसी जाती हैं और आप यहां वहां तहां तहां उनसे टकराते हैं। रात को घर लौटते वक्त इंदिरापुरम के मोड़ पर लगे जाम में मुझे सड़क किनारे एक फूल वाले की दुकान दिखी। जिस पर कुछ युवक रोज बड खरीद रहे थे। इसे रोज वाली खबरों और विज्ञापनों का असर कहें या कुछ और, लेकिन आज मेरे दिमाग ने भी सोच लिया जो कभी सोचा न था- क्यों न एक गुलाब खरीदकर देखा जाए। दुकान के पास बाइक रोक दी। तकरीबन 13 साल का एक लड़का मैला सा स्वेटर और सिर पर टोपी लगाए दुकान की कमान संभाले था। आज कोई भी उससे बुके नहीं बनवा रहा था। सबको गुलाब की कली चाहिए थी।

गुलाब की एक कली अमूमन 10 रुपए की आती है। लेकिन आज उसके रेट 25 रुपए थे। मैंने पूछा रेट क्यों बढ़ा रखे हैं तो उसका जवाब था- ‘शर आज रोज डे है!’ मैंने पूछा तुझे किसने बताया? तो बोला- ‘शर सबको पता है। सुबह से 200 गुलाब बेच चुका हूं।’ उसने सिद्ध किया कि छोटा हो बड़ा अपने-अपने बिजनेस में सब माहिर होते हैं। क्या चीज कब, क्यों और कितने की बिकेगी दुकानदार को पता रहता है। खैर 10 रोज बड खरीदने की बात पर भी वो रेट घटाने को तैयार नहीं हुआ। फिर आखिरकार एक रोज बड खरीदी। उसने बड़े करीने से उस बड को सफेद फूल वाली हरी घास के साथ एक सेलोफेन शीट में रैप किया और बड बनाकर मुझे सौंप दी। तभी एक बाइक वाला वहां और आया, जिसने आते ही उस लड़के से पूछा ‘ओए छोटू आज क्या रोज डे है?’ अपने ग्राहक की अज्ञानता पर लड़का मुस्कुराकर बोला- ‘हां, शर! आपको नहीं पता, सुबह से 200 गुलाब बेच चुका हूं।’ रात के आठ बजे भी गुलाबों की बढ़ती मांग को देखकर लड़के के चेहरे की मुस्कान रोके नहीं रुक रही थी। और उस बाइकधारी युवक ने भी एक रोज बड का आॅर्डर किया।

मैंने घर आकर गुलाब पत्नी को दिया, तो मैडम ने मुस्कुराकर उसे ग्रहण किया, थैंक्यू बोला और टीवी पर रख कर दूसरे काम में व्यस्त हो गई। मुझे लगा पांच मिनट तो हाथ में रखना चाहिए थी। आखिर 25 रुपए खर्च किए हैं। खैर, थोड़ी देर बाद मैंने ही उस गुलाब को अपने हाथ में उठाया और उसकी खूबसूरती को निहारा। देखने में सुंदर तो था, लेकिन उसमें खुशबू बहुत कम थी। देखने में इतना सुंदर और खुशबू इतनी कम। देसी गुलाब तो दूर से ही महकता है। मुझे लगा कि ये बिना खुशबू वाला सुंदर सा गुलाब बिल्कुल उन लोगों की तरह है जो ऊपर देखने में तो बहुत टिपटाॅप और सुंदर होते हैं, लेकिन उनके अंदर से चरित्र की खुशबू नहीं आती। 
तो साहब, वो गुलाब टीवी पर रखा-रखा अब बिल्कुल सूख चुका है और थोड़े दिन में डस्टबिन के हवाले कर दिया जाएगा। 

2 comments:

  1. । मुझे लगा कि ये बिना खुशबू वाला सुंदर सा गुलाब बिल्कुल उन लोगों की तरह है जो ऊपर देखने में तो बहुत टिपटाॅप और सुंदर होते हैं, लेकिन उनके अंदर से चरित्र की खुशबू नहीं आती।

    बड़े पते की बात कही है ..

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  2. "हमें अपने रिश्ते निभाने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं।"

    ये बात तो १६ आना सही कही सर आपने .......

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