Friday, February 3, 2012

भय बिनु होई न प्रीतिः आम आदमी के लिए काफी मददगार है नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन

मेरी मां गीताप्रेस गोरखपुर से छपने वाली ‘कल्याण’ मासिक पत्रिका की नियमित पाठक हैं। पिछले दिनों दिसंबर में जब मैं हरिद्वार गया तो रेलवे स्टेशन के प्लेटफाॅर्म नंबर एक पर स्थित प्रेस के स्टाॅल पर मैंने पत्रिका का वार्षिक शुल्क जमा करा दिया ताकि 2012 में पत्रिका का क्रम न टूटे। 2 फरवरी को डाकिया महोदय पत्रिका का पहला विशेषांक, जो काफी मोटा होता है, लेकर मुरादाबाद में मेरे घर पहुंचे। मम्मी तो पत्रिका का महीने भर से इंतजार था। लेकिन डाकिए ने कहा कि आपके पैसे जमा नहीं हैं आपको ये पत्रिका छुड़ाने के लिए 210 रुपए वीपीपी शुल्क अदा करना होगा। मम्मी ने डाकिए को बताया भी कि शुल्क दिया जा चुका है पर डाकिया मानने को तैयार नहीं था। फिर मम्मी ने उससे रसीद दिखाने को कहा तो वो भी उसके पास नहीं थी। इस पर मम्मी को शक हुआ और उन्होंने मुझे फोन किया। मैं उस वक्त दिल्ली स्थित अपने आॅफिस में था। मैंने आनन-फानन कह दिया कि बिना पैसे देता है तो लो वरना जाने दो। डाकिया किताब लेकर वापस चला गया और यह भी कह गया कि- अब मैं दोबारा देने नहीं आउंगा, हेड पोस्ट आॅफिस से अपने आप मंगवा लेना।

फिर मैंने गीताप्रेस गोरखपुर फोन घुमाया तो पता चला कि किताब रजिस्टर्ड डाक से भेजी गई है न कि वीपीपी से और मुझे उसके बदले कोई पैसा नहीं देना है। उन्होंने मुझे रजिस्ट्री नंबर भी दे दिया-34437। साथ में उन्होंने ये भी कहा कि हो न हो आपका डाकिया पैसे कमाने के चक्कर में है। फिर मैंने वो रजिस्ट्री नंबर लेकर पहले तो डाक विभाग के पोर्टल पर कंप्लेंट डाली और उसके बाद नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन (एनसीएच) 1800114000 पर फोन किया। उन्होंने बड़े इत्मिनान से मेरी बात सुनी और कंप्लेंट दर्ज करके एक डाॅकिट नंबर दिया। फिर मुझे बताया कि मैं पहले मुरादाबाद के एसएसपीओ (सीनियर सुप्रिंटेंडेंट आॅफ पोस्ट आॅफिस) के यहां इस बारे में एक शिकायत दर्ज करूं अगर वहां से बात न बने तो फिर हमें बताना। मुरादाबाद के हेडपोस्ट आॅफिस का फोन नंबर 0591-2415639 तो मैं कई बार मिला चुका था, लेकिन उसे किसी ने उठाया नहीं। फिर मैंने गूगल का सहारा लेकर मुरादाबाद के एसएसपीओ का लैंडलाइन नंबर खोज निकाला 0591-2410023। घड़ी में देखा तो पांच बज चुके थे, लगा कि सरकारी दामाद लोग दफ्तर बंद कर चुके होंगे। फिर भी एक कोशिश करने में क्या घिस रहा था। तीन-चार घंटी के बाद ही फोन उठ गया, किसी बाबू ने उठाया, लेकिन मेरी उम्मीद के विपरीत अदब से बात की। जब मैंने उनसे कहा कि मैं दिल्ली से बोल रहा हूं तो उनकी आवाज थोड़ी और दब गई। फिर मैंने उनको डाकिए की करनी बताई तो उन्होंने कहा कि वीपीपी होगी उसके तो पैसे देने ही होंगे, तो मैंने डाकिए के पास कोई रसीद न होने की बात बताई और अपना रजिस्ट्री नंबर दिया जो गोरखपुर से 24 जनवरी को की गई है। फिर उन्होंने मेरा फोन ट्रांसफर कर दिया। उधर से एक महिला की मधुर आवाज सुनाई दी, उन्होंने मेरी उम्मीद के विपरीत सारी बात आराम से सुनी। फिर मेरा मुरादाबाद का पता पूछा और साथ ही मैंने उन्हें रजिस्ट्री नंबर भी बता दिया। बोलीं कि मैं दिखवाती हूं। मैंने कहा कि मेरी शिकायत दर्ज की हो तो मुझे नंबर दे दीजिए, तो थोड़ा मुस्कुराकर बोलीं कि अभी शिकायत दर्ज नहीं की है। कल तक अगर आपकी डाक न पहुंचे तो शिकायत दर्ज करवा दीजिएगा। खैर, जब उन्होंने मेरी सारी बात सुन ही ली और आश्वासन भी दिया तो, मेरे पास बहस करने की कोई वजह नहीं थीं। लेकिन सरकारी सिस्टम के खिलाफ मन में कोफ्त जरूर हो रही थी।

फिर रात को नौ बजे मां का फोन फिर से आया कि- आठ बजे डाकिया आया था और किताब दे गया है। वही डाकिया जो दिन में कह कर गया था कि अपने आप हेड पोस्ट आॅफिस से मंगवा लेना, रात के आठ बजे ड्यूटी टाइम खत्म हो जाने के बावजूद घर आकर किताब दे गया। साथ में दांत निपोरते हुए स्पष्टीकरण भी दे गया कि किसी दूसरे की वीपीपी वाली डाक उठा लाया था इसलिए गलती हो गई। मम्मी ने फोन पर मुझे डाकिए का वृतांत सुनाने के बाद कहा- बड़ा खराब समय है, रामायण में सही लिखा है ‘भय बिनु होई न प्रीति दयाला’।

खैर, इस पूरी घटना को यहां लिखकर मैं डाक विभाग की साख पर बट्टा नहीं लगा रहा, न डाक विभाग से मेरी कोई निजी खुंदक है। देश की सेवा में डाक विभाग जो काम कर रहा है वो काफी सराहनीय भी है और बेमिसाल भी। लेकिन हर जगह कुछ एक लोग ऐसे होते हैं जो अपने पूरे विभाग पर बट्टा लगवाने का काम करते हैं और आप उनका कुछ नहीं उखाड़ सकते। जैसे कई ट्रकों के पीछे लिखा होता है न कि ‘यो तो यूं ही चालैगी’ तो भैया ये सिस्टम तो यूं ही चलता रहेगा।

ये घटना यहां लिखने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ इतना है कि नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन नंबर उपभोक्ताओं की मदद करने में काफी सराहनीय भूमिका निभा रहा है। मेरे कई मित्र इसी नंबर के इस्तेमाल से मोबाइल कंपनियों की दाढ़ में गया व्यर्थ पैसा वापस निकलवा चुके हैं। मैंने भी इसका पहली बार इस्तेमाल किया और काफी उपयोगी पाया। इस तरह की चीजें आम आदमी को सशक्त बनाती हैं। अगर हर सरकारी विभाग अपना काॅल सेंटर बनाकर कंज्यूमर हेल्पलाइन नंबर शुरू कर दे, तो आम आदमी की परेशानियां काफी कम हो सकती हैं।

1 comment:

  1. जागरूक करती पोस्ट, सचेत रहना आज के समय की ज़रुरत है.....

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