Monday, July 12, 2010

यमुना: कल काली थी, आज मटमैली है, कल फिर काली होगी

कल कश्मीरीगेट से मेट्रो जैसे ही आगे बढ़ी तो यमुना कुछ बदली सी नज़र आई. अभी कुछ दिन पहले तो बिलकुल काली थी आज मटमैली है. ओह! बरसात का कमाल है, जो इसका जल थोडा साफ़ नज़र आ रहा है. कोई नहीं थोड़े दिनों की बात है, फिर अपने पुराने रूप में आ जाएगी. वही पुराना काला प्रदूषित रूप.

दरअसल यमुना का काला प्रदूषित रूप उसका अपना रूप नहीं है. यमुना तो अपने उद्गम यमुनोत्री से निर्मल ही चली थी. लेकिन कंक्रीट के जंगल से गुजरी तो उसको ये रूप मिला.  यमुना का ये रूप देश के ठेकेदारों के दिलों के रंग की छाया है. जिनके तन उजले हैं और मन काले हैं. यमुना उनके मन का रंग दिखा रही है बस कोई पहचानने वाला चाहिए. ठेकेदारों से मेरा तात्पर्य केवल नेता लोगों से नहीं है. इन ठेकेदारों में उद्योगपति भी शामिल हैं. असलियत में राजनीति को पैसा ही चलाता है. नदियों की दुर्दशा के असली गुनाहगार उद्योग हैं. चाहे दिल्ली में यमुना किनारे के उद्योग हों या फिर कानपुर में गंगा किनारे वाले. सरकार उद्योगों पर ज्यादा नकेल इसलिए नहीं कस सकती क्योंकि चुनाव आने पर इन्हीं उद्योगपतियों के दरवाजे पर चंदे के लिए झोली फैलानी पड़ती है.

वैसे तो नदियों की निर्मलता या प्रदुषण को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए. लेकिन फिर भी नदियों को अगर हिन्दुओं की आस्था से जोड़ के देखा जाये तब भी नदियों में जहर घोलने वाले ज्यादातर उद्योगपति हिन्दू ही तो हैं. और ये वही उद्योगपति हैं जो जब धार्मिक मंचों पर चढ़ते हैं तो सबके सामने मोटी-मोटी रकम दान में देकर वाह-वाही लूटते हैं. 

कॉमनवेल्थ खेल के लिए जब खजाने के मुंह खुले तो यमुना को उम्मीद थी शायद उसका भू कुछ भला हो. लेकिन ये उसका भ्रम था. राष्ट्रीय नदी घोषित हो जाने के बावजूद जब उसकी बड़ी बहन गंगा का ही कुछ भला नहीं हो पा रहा है तो उसका भला कैसे हो सकता है. मंच से बोलने में कुछ घिसता नहीं है इसलिए बोल दिया जाता है कि यमुना को 'थेम्स ऑफ़ इंडिया' बना दिया जायेगा. यमुना इस बात को दिल पर ले लेती है. बेचारी कितनी भोली है.

मनोज कुमार ने विदेशी मिट्टी पर बड़ी शान से गाया था कि- "इतनी ममता नदियों को दी, उन्हें माता कह के बुलाते हैं..." लेकिन पूरे भारत की दिक्कत बस यही तो है कि हम जो कहते हैं वो करते नहीं. भारतीय दर्शन में प्रकृति हो या राष्ट्र हर जगह मनुष्य के साथ एक रिश्ता स्थापित किया गया है. रिश्ता इसीलिए स्थापित किया ताकि उस रिश्ते को निभाया जाये. लेकिन हम रिश्ते को कैसे निभा रहे हैं- "जय गंगा/यमुना मैया" बोलकर राख से भरी पौलीथीन नदी में अर्पित कर दी. लो जी निभा दिया रिश्ता. वाह री बुद्धि!

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