Saturday, April 10, 2010

हर बार एक ही बात क्यों दोहराई जाती है?

मिस्टर पीसी,
खबर मिली है कि दंतेवाडा की घटना के बाद आप इस्तीफ़ा देना चाहते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री ने आपका प्रस्ताव ठुकरा दिया है. अच्छी बात ये रही कि बीजेपी ने भी आपका समर्थन किया है और वो भी नहीं चाहती कि आप पद त्याग करें.

सच पूछिए तो देश के लोग भी नहीं चाहते की आप इस्तीफ़ा दें, क्योंकि लोग आप से पूर्ववर्ती गृह मंत्री की कार्यशैली देख चुके हैं. कम से कम आपके काम करने का तौर तरीका उनके जैसा नहीं है. आप की बात में काफी हद तक गंभीरता झलकती है. ये आपकी इमानदार स्वीकारोक्ति है कि इस जघन्य जनसंहार के लिए अंततः आप ही जिम्मेदार हैं. सो, इस समय आपका पद त्याग उचित नहीं.

लेकिन मिस्टर पीसी, आपको अब ये समझ लेना चाहिए कि लोग अब आजिज आ चुके हैं. आखिर कब तक हम भारतियों का खून पानी की तरह बहता रहेगा. जब जिसके मन में आता है हमारा खून बहा के चला जाता है. हद तो तब होती है जब लोगों के खून पर राजनीती होने लगती है.

अच्छा हाँ, आज आपके मंत्रालय ने देश के सभी प्रमुख अख़बारों में विज्ञापन दिया है. विज्ञापन कह रहा है "इनफ-इज-इनफ". आखिर ये विज्ञापन देकर आप साबित क्या करना चाहते हैं. ये बात जो इस विज्ञापन में कही गयी है वो हर बार कही जाती है. लेकिन कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता. भावनात्मक भाषण देने से कोई काम बनने वाला नहीं है. सरकार को दृढ इच्छाशक्ति दिखानी होगी, ढुल-मुल रवैये से कुछ काम बन ने वाला नहीं है. इस देश के लोग सरकार इसीलिए चुनते हैं कि वह उनकी रक्षा करे. आप विज्ञापन देकर पता नहीं किस को क्या दिखाना चाहते हैं.

सरकार हर तरह से सक्षम है. इस हत्याकांड का बदला लेना बेहद जरूरी है. ये हमारी बदला न लेने की प्रवृत्ति ही है जिसका हम आज खामियाजा भुगत रहे हैं. अपनी अच्छी छवि बनाने के चक्कर में हम हर साल हजारों लोगों को खो रहे हैं. अगर गिन ने बैठ जाएँ तो गिनती ख़तम हो जाये, लेकिन जुल्म की दास्ताँ न ख़तम होगी. भारत इतना कमजोर तो कभी नहीं रहा.

आतंकियों ने हमारा हवाई जहाज हाई-जैक किया, हमने बदला नहीं लिया,
बांग्लादेशियों ने हमारे जवानों की ऑंखें निकल ली, हमने बदला नहीं लिया,
हमारी संसद की आबरू को तार तार कर दिया गया, हमने बदला नहीं लिया,
हमारे धार्मिक स्थलों को लहूलुहान कर दिया गया, हमने बदला नहीं लिया,
हमारी दिवाली काली कर दी गयी, हमने बदला नहीं लिया,
होटल ताज बर्बाद कर दिया गया, हमने बदला नहीं लिया,
अब हमारे ७६ जवान हमसे छीन लिए गए और हम अब भी चुप हैं....

मिस्टर पीसी, माना कि आप भले आदमी हैं, लेकिन ये भलाई अपने नागरिकों के लिए रखिये, आतताइयों के लिए नहीं. जब तक खून का बदला खून नहीं होगा, इस तरह की घटनाएँ रुकने वाली नहीं हैं. हमारी शांति प्रियता को अब हमारी कमजोरी और कायरता समझा जाने लगा है. इस छवि को जल्द से जल्द बदला जाये.

1 comment:

  1. अब भी अगर मुट्ठियां न भीचीं तो आने वाली पीढ़ियां नामर्द पैदा होंगी।
    यह हम पर है कि हम भविष्य में क्या और कैसा चाहते है।

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