Friday, February 29, 2008

बजट



भाई आज २९ फरवरी को अपने वित्त मंत्री श्री पी चिदंबरम जी ने बजट पेश किया। लुभावन ही लुभावन। रियारत ही रियारत। हमारे ऑफिस में आज अनोखी विचार गोष्ठी बुलाई गई। इसमें कोई अर्थशास्त्र का ग्याता नहीं बुलाया गया। बजट पर अपने विचार देने के लिए बुलाये गए थे आम लोग। वित्त मंत्री जी घोषणा पर घोषणा किए जा रहे थे। लोग समझने की कोशिश कर रहे थे। मजेदार बात यह रही कि कोई भी बजट को अपने आप से नहीं जोड़ पाया। उनको लग रहा था बड़ी बड़ी योजनाएं उनके किसी काम की नहीं। कहीं न कहीं उनके मन में यह बात अच्छी तरह घर कर गई थी कि सरकार का पैसा भ्रष्ट अफसरों की जेब ज्यादा गर्म करेगा, योजना में कम लगेगा। सही भी है पिछली सरकार ने देश के पांच राज्यों में एम्स अस्पताल खोलने की घोषणाकी थी। इतने साल हो गए, पता नहीं कहाँ घुस गए वो एम्स। इस देश की नई सड़कें एक बरसात नहीं झेल पातीं। बजरी ऐसे बहती है मानो सड़क पर बाजरा बिखेर दिया हो। मंत्री जी ने आज कई सपने दिखाए। लेकिन काश वो दिल्ली से बाहर आकर देश के किसी गाँव का दौरा करते। या किसी सरकारी कार्यालय में आम आदमी के तरह पंक्ति में लगते। तब उनको पता चलता कि उनके कर्मचारी तो अभी बात करना भी नही सीख पाए हैं काम क्या करेंगे। अधिकारी फाइलों में आंकडे पूरे करने में लगे रहते हैं। यार कुछ जमीन पर होना चाहिए। ये गाँधी जी ने हिंद स्वराज में देश के विकास के लिए कुछ तरीके बताये हैं। उन पर न उनके नेहरू ने ध्यान दिया। और न ही उनके बाद की सरकारों ने। चलो भाई देश तो चल ही रहा है। आगे भी चलता रहेगा। आम आदमी का क्या है। वो तो होता ही पिसने के लिए है.

No comments:

Post a Comment